पीएम मोदी ने मोटे अनाज को सराहा तो यूपी ने दोगुना किया लक्ष्य, अब तैयारी 25 लाख हेक्टेयर में उपज की

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हलधर किसान। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिनों पहले सत्तापक्ष और विपक्ष के नेताओं के साथ दिल्ली में मोटे आनाज से तैयार लंच का आनंद लिया था. कृषि मंत्रालय द्वारा आयोजित इस लंच के कार्यक्रम में मोटे अनाज से तैयार बाजरे का चूरमा, रागी डोसा, रागी रोटी के साथ नारियल की चटनी, कालू हुली, चटनी पाउडर सहित अन्य पकवान प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति और अन्य नेताओं को पेश किए गए थे. चर्चा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बाजरे के चूरमा और रागी रोटी खूब भायी. तो अब प्रधानमंत्री की इस पसंद का संज्ञान लेते उत्तर प्रदेश सरकार ने मोटे आनाज का उत्पादन दोगुने से अधिक करने का लक्ष्य तय कर दिया है.इस दिशा में तेजी दिखाते हुए राज्य के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने कृषि विभाग के अफसरों के साथ बैठक कर प्रदेश में अगले साल 25 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाज के उत्पादन की तैयारी किए जाने का निर्देश दिया है. गत 26 दिसंबर को राज्य में मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ाने के लिए हुई बैठक में मुख्य सचिव ने यह निर्देश दिया हैं. कृषि अधिकारियों के अनुसार प्रदेश में इस वक्त करीब 11 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाज की खेती की जा रही है, जिसे अगले साल बढ़ाकर 25 लाख हेक्टेयर में किए जाने की तैयारी अभी से शुरू करने को कहा गया है. यह काम आसान नहीं है.
प्रदेश की 86 प्रतिशत भूमि सिंचित है, जिस पर धान, गेहूं, दलहनी और तिलहनी फसलों की खेती की जाती है, इनके स्थान पर मोटे अनाज की खेती करना किसानों के मुश्किल होगा. ऐसे में मोटे अनाज का उत्पादन दोगुने से भी अधिक करने का लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं होगा. यह जानते हुए भी सूबे की सरकार ने इस लक्ष्य को हासिल करने की ठानी है, क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह साबित करना चाहते हैं कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद और निर्देशों को जमीन पर उतारने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखते. इसके लिए इंटरनेशनल मिलेट्स इयर (2023) के मद्देनजर योगी सरकार अब मोटे अनाजों पर मेहरबान हो गई है. जिसके तहत यूपी सरकार इन अनाजों को लोकप्रिय बनाने की कार्ययोजना तैयार कर उस पर अमल करने में जुट गई है.

पहली बार 18 जिलों में MSP पर बाजरे की खरीद
इसके तहत राज्य में बुंदेलखंड और अन्य जिलों में मोटे अनाज के लिए उपयुक्त इलाकों को चिन्हित कर मोटे आनाज के बीज की व्यवस्था का आकलन किया जाने लगा है. कृषि विभाग को आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और अन्य राज्यों से संपर्क कर मोटे अनाजों के बीज की समुचित व्यवस्था करने को कहा गया है. यही नहीं पहली बार सरकार 18 जिलों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बाजरे की खरीद भी कर रही है. खेती किसानी पर लिखने वाले गिरीश पांडेय के कहते हैं कि गेहूं, धान और गन्ने के बाद बाजरा उत्तर प्रदेश की चौथी प्रमुख फसल है. मोटे अनाज (मिलेट) मसलन बाजरा, ज्वार, रागी/मडुआ, सावां और कोदो आदि, ये अनाज सिर्फ नाम के मोटे हैं. पोषक तत्त्वों के मामले में ये सौ फीसद खरे हैं.

खाद्यान्न के रूप में सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाले चावल या गेहूं इस मानक पर इनके सामने कहीं ठहरते नहीं हैं. गेहूं में मोटापा बढ़ाने वाले ग्लूटोन (एक तरह का प्रोटीन) से फ्री इन अनाजों में भरपूर मात्रा में डायट्री फाइबर, आइरन, कैल्शियम, वसा, कार्बोहाइड्रेट, मैग्नीशियम और प्रोटीन मिलता है. यही वजह है कि तमाम शोधों के बाद आधुनिक विज्ञान इनको पोषण के ‘पॉवर हाउस” बता रहा है. ये अनाज कुपोषण के खिलाफ वैश्विक जंग के सबसे प्रभावी हथियार बन सकते हैं. इनकी इन्ही खूबियों के कारण यूपी में इसके उत्पादन को बढ़ाने का कार्य किया जा रहा है.

प्रति हेक्टेयर बाजरा उत्पादन में यूपी आगे
राज्य के कृषि उत्पादन आयुक्त मनोज कुमार सिंह के अनुसार, बाजरा और ज्वार भारत के दो प्रमुख मोटे अनाज हैं. भारत में तीन प्रमुख (राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र) बाजरा उत्पादक राज्य हैं. रकबे के हिसाब से राजस्थान (43.48 लाख हेक्टेयर) के बाद उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर (9.04 लाख हेक्टेयर) पर है. महाराष्ट्र में 6.88 लाख हेक्टेयर में बाजरे की खेती होती है. प्रति हेक्टेयर प्रति किलो ग्राम उपज के लिहाज से उत्तर प्रदेश इन दो राज्यों से आगे हैं. उत्तर प्रदेश की उपज 2156 किलो ग्राम है तो राजस्थान और महाराष्ट्र की उपज क्रमशः 1049 और 955 किलो ग्राम है. इस लिहाज से उत्तर प्रदेश में रकबा और उपज दोनों बढ़ाने की खासी संभावना है. खासकर रकबा बढ़ाने की. रही ज्वार की बात तो भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं. रकबे के मामले में कर्नाटक और प्रति हेक्टेयर प्रति क्विंटल उपज के मामले में कर्नाटक नंबर एक पर है. उत्तर प्रदेश में इसमें भी रकबा और उपज बढ़ाने की खासी संभावनाएं हैं. प्रदेश सरकार की मंशा भी यही है. इसलिए सरकार ने 20121 (1.71 लाख हेक्टेयर) की तुलना में 2023 में ज्वार के रकबे का आच्छादन क्षेत्र का लक्ष्य 2.24 लाख हेक्टेयर रखा है. इसी तरह लुप्तप्राय हो रहे सावां, कोदो के आच्छादन का लक्ष्य भी 2023 के लिए करीब दोगुना कर दिया है.

विदेशों में भी मुद्रा कमाएगा बाजरा
कृषि उत्पादन आयुक्त मनोज कुमार सिंह का दावा है कि अपना बाजरा भी विदेशी मुद्रा कमाने विदेश जाएगा. जल्द होने शुरू होने वाला “इंटर नेशनल मिलेट इयर” 2023 इसका जरिया बनेगा. देश के उत्पादन का करीब 20 फीसदी बाजरा उत्तर प्रदेश में होता है. प्रति हेक्टेयर प्रति किग्रा उत्पादन देश के औसत से अधिक होने के कारण इसकी संभावनाएं बढ़ जाती हैं. तब तो और भी जब अच्छी-खासी पैदावार के बावजूद सिर्फ एक फीसदी बाजरे का निर्यात होता है. निर्यात होने वाले में अधिकांश साबुत बाजरा होता है. प्रसंस्करण के जरिए इसके निर्यात और इससे मिलने वाली विदेशी मुद्रा की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. प्रदेश सरकार का ध्यान भी प्रसंस्करण पर है. आगामी फरवरी में होने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में भी इस सेक्टर पर खासा फोकस है. ऐसे में इंटरनेशनल मिलेट इयर में बाजरे की लोकप्रियता बढ़ाने में खाद पानी का काम करेगी तो योगी सरकार का प्रसंस्करण उद्योग के प्रति सकारात्मक रवैया बोनस होगा. जब राज्य में मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ेगा तो इसके निर्यात में भी इजाफा होगा और बाजरा विदेशी मुद्रा कमाएगा.

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