जीआई क्षेत्रो में काला नमक के परीक्षण को बढ़ावा देगा इर्री, 80 प्रजातियों पर बनारस में हो रहा शोध

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हलधर किसान (शोध)। उत्तर प्रदेश में काला नमक चावल की पारंपरिक प्रजातियों व उनकी खेती को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान-दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क) लगातार शोध एवं विकास कार्य को बढ़ावा दे रहा है। अब तक संस्थान द्वारा प्रदेश भर में काला नमक धान के भौगौलिक भू-निर्धारण (जी आई) क्षेत्रों से 80 से ज्यादा प्रजातियों को वाराणसी स्थित केंद्र लाकर उनपर शोध किया जा रहा है। पिछले साल से इनमें से चयनित उत्तम गुणवत्ता वाली दस प्रजातियों (उत्तम महक एवं गुणवत्ता वाली) को प्रदेश के जीआई क्षेत्रों वाले कृषि विज्ञान केन्द्रों के साथ मिलकर तुलनात्मक अध्ययन किया जा रहा हैं। इसी क्रम में महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र में तुलनात्मक अध्ययन हेतु आइसार्क द्वारा कालानमक धान की 9 प्रजातियों की नर्सरी लगायी गयी हैं। इसके साथ ही कुछ प्रगतिशील किसानों द्वारा भी इन प्रजातियों का परीक्षण किया जाएगा। आइसार्क के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह ने बताया कि आइसार्क द्वारा चिन्हित कालानमक धान प्रजातियों में कोई भी अनुवांशिक संशोधन नहीं किया गया है। जी. आई क्षेत्रो में ही पाई जाने वाली पारंपरिक प्रजातियों से ही शोध आधारित परिणामों को एकत्रित एवं आंकलन के बाद इन प्रजातियों को उन्ही क्षेत्रों में विकसित कर बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। यह प्रजातियां पारंपरिक सुगंध और स्वाद में पहले जैसी ही हैं। इसके साथ यह प्रयास है कि चिन्हित प्रजातियों को अति शीघ्र बीज श्रृंखला प्रणाली में डाल कर किसानों को उपलब्ध करा दिया जाय। इससे अपनी सुगंध एवं बेमिसाल स्वाद के लिए प्रसिद्ध कालानमक धान के ज़रिये किसानों की आजीविका भी समृद्ध हो सके। कालानमक धान के अतिरिक्त महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र के प्रक्षेत्र में आइसार्क द्वारा बायो-फोर्टीफाइड धान, तनाव सहनशील प्रजातियों को भी किसानों को प्रदान किया गया है एवं प्रगतिशील किसानों में इन प्रजातियों को मिनी-किट के रूप में भी वितरित किया गया है।

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