हलधर किसान। भारत में औसतन हर कृषक परिवार पर 74,000 रुपए से ज्यादा का कर्ज है। विडम्बना देखिए कृषि प्रधान इस देश में हर दिन औसतन 29 किसान और खेतिहर मजदूर आत्महत्या करते हैं।
भारत में 50 फीसदी कृषक परिवार कर्ज के बोझ तले दबे हैं। औसतन हर कृषक परिवार पर 74,000 रुपये से अधिक का कर्ज है। विडम्बना देखिए कृषि प्रधान इस देश में हर दिन औसतन 29 किसान और खेतिहर मजदूर आत्महत्या करते हैं। यह जानकारी आज सीएसई और डाउन टू अर्थ जारी नई रिपोर्ट “स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2022: इन फिगर्स” में सामने आई है।
गौरतलब है कि विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) के मौके पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ हर साल जून में अपनी ई-बुक प्रकाशित करती है, जो पर्यावरण से जुड़े आंकड़ों का एक अनूठा संग्रह है। इन आंकड़ों को सीएसई और पत्रिका से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा विश्लेषित किया जाता है।
इस नई रिपोर्ट को जारी करते हुए डाउन टू अर्थ संपादक सुनीता नारायण ने कहा, ‘आंकड़ें, माप का आधार हैं, जितना बेहतर हम इन्हें मापते हैं उतना बेहतर ही हम इनके प्रबंधन से प्राप्त करते हैं। यही वजह है कि हम हर साल इन डेटासेट को एक साथ रखते हैं। यह डेटासेट हमें दुनिया में दर्ज होने वाले परिवर्तनों को समझने में मदद करते हैं। इतना ही नहीं यह हमें यह भी समझने में मदद करते हैं कि क्या करने की आवश्यकता है।‘
यदि कृषि से जुड़े विश्लेषण को देखें तो रिपोर्ट के अनुसार जहां 2012-13 से 2018-19 के बीच कृषि लागत में करीब 35 फीसदी की वृद्धि हुई है वहीं दूसरी तरफ एक औसत किसान परिवार की खेती से होने वाली आय 2012-13 में 48 फीसदी से घटकर 2018-19 में 37 फीसदी रह गई है।
इसी तरह यदि ठोस कचरे की बात करें तो 2019-20 में, भारत ने कुल 35 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न किया था, जिसमें से 12 फीसदी ही रीसायकल हो सका था, जबकि 20 फीसदी को जला दिया गया। वहीं शेष 68 फीसदी का कोई लेखा-जोखा नहीं है।
मतलब वो पर्यावरण में ऐसे ही खुला छोड़ दिया गया है, जिसे जमीन या पानी में डंप कर दिया है। वहीं हानिकारक अपशिष्ट को देखें तो 2019-20 से 2020-21 के बीच इसमें 5 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं 2018-19 से 2019-20 के बीच इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट उत्पादन में करीब 32 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है।