हलधर किसान (रबी सीजन)। बुंदेलखंड के सागर में पानी की कमी से जूझ रहे किसानों ने अब खेती करने का नया फार्मूला निकाला है, जिसमें वह लागत से 8 गुना तक कमाई कर रहे हैं. गेहूं, मसूर और चना की खेती करने वाले किसान अब सरसों की खेती की तरफ रुचि दिखा रहे हैं.
वजह साफ है कि इसमें लागत भी ज्यादा नहीं आती और बहुत कम पानी में भी यह अच्छी उपज हो जाती है. साथ ही जंगली जानवरों से भी नुकसान होने का डर नहीं रहता है.
इसकी वजह से किसान इस तरफ बढ़ रहे हैं. सागर के परसोरिया, गिरवर, गढ़ाकोटा केसली रहली इलाके में करीब 400 हैकटेयर में सरसों की खेती की जा रही है.
सरसों की खेती करने वाले किसान घनश्याम लोधी ने बताया कि गेहूं की खेती करने पर उसमें 20000 की लागत आती है.
अच्छा उत्पादन होने पर 40 से 50 हजार का ही अनाज निकल पाता है, लेकिन सरसों में मात्र 10,000 की लागत में कम से कम 80,000 मिल जाते हैं. वह पिछले दो सालों से गेहूं को छोड़कर सरसों की खेती कर रहे हैं.
जानवरों से बचाने की भी समस्या नहीं
साथ ही सरसों की फसल को जंगली जानवरों से बचाने की भी चुनौती नहीं होती है. ना तो इसे नीलगाय खाती है ना हिरण इसके अंदर जाते हैं और सूअर भी इस तरफ नहीं आते हैं. वहीं गेहूं और चने की फसल में इन जानवरों का आतंक रहता है और एक दिन भी अगर फसल में आ गए, तो पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं.
एक बार की सिंचाई में ही फसल हो जाती हैं तैयार
सागर कृषि विभाग के अधिकारी जितेंद्र सिंह राजपूत ने बताया कि बुंदेलखंड के कुछ अंचलो में पानी की कमी है. ऐसे में सरसों की खेती करने से किसान कम पानी में भी अच्छा उत्पादन कर सकते हैं. सरसों को दो बार सिंचाई करने की जरूरत है.
एक बार की सिंचाई में भी फसल संभल जाती है. इसमें कोई बीमारी नहीं लगती है. एक बार ही खाद का छिड़काव करने पर फसल पूरी तरह से पक कर तैयार हो जाती है. एक एकड़ की जगह में 8 क्विंटल से लेकर 12 क्विटंल तक का उत्पादन हो जाता है.