अटल स्मृति : किसान हित के लिए अटलजी ने किया था लेवी आंदोलन, नैनी जेल में बंद रहे थे 5 दिन

हलधर किसान। भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी किसानों के सच्चे हितैषी थे। उन्होंने किसानों के लिए कांग्रेस सरकार से संघर्ष किया था। 1973-74 में कांग्रेस द्वारा किसानों की उपज खरीदने को लेकर एक तुगलकी फरमान जारी हुआ, जिसका देशभर के किसानों और जनसंघ ने विरोध किया। कांग्रेस सरकार कम मूल्य पर गेहूं खरीद रही थी, जबकि बाजार में उससे करीब दो गुना कीमत मिल रही थी। इतना ही नहीं सरकार ने प्रत्येक किसान से कुल गेहूं उपज का आधा हिस्सा बेचना अनिवार्य कर दिया था। भले ही उसके खेत में एक ही क्विंटल की पैदावार हुई हो।
किसान विरोधी इस बिल का विरोध उत्तर प्रदेश में भी हुआ। इसकी जिम्मेदारी जनसंघ ने अटल बिहारी वाजपेयी को दी। उत्तर प्रदेश में उन दिनों हेमवती नंदन बहुगुणा मुख्यमंत्री थे। गेहूं के लेवी आंदोलन के तहत किसानों ने जनसंघ के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में जगह-जगह विरोध करना शुरू किया। लखनऊ में युवाओं का साथ मिला और एक बड़ा आंदोलन शुरू हो गया। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में उमड़ा जनसैलाब देखकर उत्तर प्रदेश कांग्रेस सरकार के हाथ पैर फूल गए। सरकार के आदेश पर पुलिस ने घेराबंदी कर बल प्रयोग करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी की बात जंगल में आग की तरह फैल गई, अब आंदोलन और तेज हो गया। बाद में पुलिस ने करीब 500 युवाओं को भी गिरफ्तार किया, लेकिन लखनऊ की जेल में अटल बिहारी वाजपेयी और 500 युवा आंदोलनकारियों को रखने पर जेल के घेराव का अंदेशा था।
उत्तर प्रदेश सरकार ने रातों-रात अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य 500 युवा आंदोलनकारियों को प्रयागराज के केंद्रीय कारागार नैनी भेज दिया।

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष रामाधीन सिंह अपने साथियों के साथ नैनी जेल में ही थे। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बिताए हुए पलों को याद करते हुए बताया कि केंद्रीय कारागार नैनी के सर्किल नंबर-5 के बैरक नंबर-1 में अटल बिहारी वाजपेयी को रखा गया था, जिसमें पुस्तकालय भी स्थित था। उनके साथ लखनऊ से आए 500 आंदोलनकारियों को उसी सर्किल की अन्य बैरकों में रखा गया था। नैनी जेल में अटल बिहारी वाजपेयी 5 दिनों तक रहे। सर्किल में सभी का सामूहिक रूप से नाश्ता भोजन बनता था और शाम को विचार गोष्ठी होती थी, जिसमें देश के हालात को लेकर परिचर्चा होती थी। विचार गोष्ठी का समापन उद्बोधन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा होता था। पांच दिन बाद अटल बिहारी की जमानत हो गई और वह नैनी जेल से छूटकर लखनऊ चले गए।
हम घंटाघर वाले नेता नहीं हैं’
केंद्रीय कारागार नैनी में जनसंघ के नेताओं की भीड़ लगी रहती थी। स्थानीय नेता तीरथ नाम कोहली भी वहां मिलने जाते थे। अटल जी की रिहाई होने के बाद उनकी इच्छा थी कि उनकी एक सभा घंटाघर में आयोजित की जाए। जब तीरथ राम कोहली ने यह विचार रखा तो अटल बिहारी अपने चिर परिचित अंदाज में टिप्पणी की कि वह घंटाघर वाले नेता नहीं हैं। अटल बिहारी की दिनचर्या के बारे में बताते हुए रामाधीन सिंह ने बताया कि उनकी दिनचर्या बहुत नियमित थी। कैसा भी भोजन बने, लेकिन उस भोजन को खाते समय बहुत अच्छा बना है, बहुत अच्छा बना है, बोलते जाते थे।

पीएम बनते ही किसान हित में लिए थे फैसले
अटल बिहारी वाजपेयी किसानों की पीड़ा को समझते थे। जब देश के प्रधानमंत्री बने तो सबसे पहले किसानों के हक में ऐतिहासिक फैसले लिए। किसानों को क्रेडिट कार्ड की सुविधा, अटल गेहूं का समर्थन मूल्य 19.6 प्रतिशत बढ़ोतरी, चीनी मिलों को लाइसेंस प्रणाली से मुक्ति और राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना तैयार कराई। किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त जल मिले, इसके लिए नदियों को आपस में जोड़ने की योजना लाए। किसान की उपज अन्य प्रांतों में भी पहुंचे, उसके लिए उन्होंने उच्चस्तरीय सड़कों की कनेक्टिविटी पर कार्य किया। इतना ही नहीं अटल बिहारी वाजपेयी 15 अगस्त 2003 को जब लाल किले के प्राचीर से देश को संबोधित कर रहे थे, तब पहली बार उन्होंने ही किसानों की आय दोगुना करने की बात कही थी।

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