बारिश के बहते जल को भूमि में सहेजने के लिए बनी 1038 जलसंरचनाएं

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37 लाख 49 हजार 415 घन मीटर जल होगा स्टोर

हलधर किसान, खरगोन। बारिश का पानी सहेजने के लिए जिले में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और मनरेगा के तहत जल जलसंरचनाएं बनाई गई है। जिनसें सीधे जल को भूमि में उढेलने के साथ.साथ सिंचाई व वन्य जीवों के अतिरिक्त पशुओं के लिए उपयोगी होंगे। मनरेगा पीओ श्याम रघुवंशी ने बताया कि बारिश समाप्त होते ही दिसम्बर से जल संरक्षण के कार्य प्रारम्भ हुए हैं। इसमें 18 हजार से 20 हजार घन मीटर जल संरक्षण के लिए अमृत सरोवर तथा निस्तार तालाब व तालाब से 3000.3000 हजार घन मीटर जल रोका जा सकता है। इसके अलावा खेत तालाब, चेक डेम व स्टॉप डेम से 800 से 1000 हजार घन मीटर जल सहेजने का कार्य किया जाता है। इसके अलावा कंटूर ट्रेंच और सोख पीठ, रिचार्ज पीठ आदि भी संरचनाएं है जो जल संरक्षण के लिए उत्तम है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के पीओ श्री आरके पाटीदार ने बताया कि वॉटर शेड के तहत भी जिले में 13 अमृत सरोवर और 41 अन्य जल संरक्षण के कार्य किये गए हैं। इसमें चेकडैम, खेत तालाब, परकोलेशन टैंक, कंटूर ट्रेंच शामिल है। गत वर्ष समाप्ति के बाद अब तक 70 अमृत सरोवरों का निर्माण हुआ है। इतना ही नहीं 277 खेत तालाब, 106 चेक डैम, 322 वॉटर पोंड, 171 निस्तार तालाब, 38 स्टॉप डैम तथा 11 हेक्टेयर में कंटूर ट्रेंच बनाने का कार्य हुआ है। इन 984 सभी जल संरचनाओं से 31 लाख 38 हजार 800 घन मीटर जल संरक्षण एक आंकलन के अनुसार होगा।
वॉटर शेड से 6 लाख घन मीटर से अधिक जल संरक्षण होगा
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत इस वर्ष वॉटर शेड से 13 अमृत सरोवर तालाब बनाये गए हैं। इनसे 3 लाख 58 हजार 215 घन मीटर जल स्टोर होगा। जबकि अन्य जल संग्रहण संरचनाओं के 41 कार्य पूर्ण हुए हैं। जिनसे 252400 घन मीटर जल एकत्रित होगा और भूमि के अंदर भी स्टोर होने की उम्मीद है। इस तरह वॉटर शेड के द्वारा 54 कार्यों से 6 लाख 10 हजार 615 घन मीटर जल सहेजा जाएगा।
प्राकृतिक जल प्रबंधन की दिशा में बेहतर कार्य हुआ
जिला पंचायत सीईओ श्रीमती ज्योति शर्मा ने बताया कि मनरेगा अंतर्गत जल संरक्षण एवं वृक्षारोपण जिसे प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन कहा जाता है। इसमें 65 परसेंट न्यूनतम व्यय का प्रावधान होने के बावजूद जिला में लगभग 78 प्रतिशत का व्यय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में किया जा रहा है। जोकि खरगोन जैसे जल आभाव व सूखाग्रस्त जिलों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

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